Soyabean Yellow Mosaic Disease: सोयाबीन फसल में पीला मोजेक रोग की रोकथाम करना जरूरी, नहीं तो होगा 90% तक नुकसान 

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Soyabean Crop Yellow Mosaic Disease: हमारे देश में खरीफ के सीजन में सोयाबीन की खेती मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान के साथ महाराष्ट्र में भी किसानों के द्वारा बड़े स्तर पर बुवाई किया जाता है। लेकिन किसानों के लिए अब सबसे बड़ी चुनौती सामने आई है वह है पीला मोजेक वायरस जनित रोग के चलते फसल अब खत्म होने की कगार पर पहुंच रहा है। 

 

 

सोयाबीन फसल में पीला मोजेक रोग की रोकथाम करना जरूरी

 

सोयाबीन की फसल में होने वाले इस पीला मोजेक के चलते किसानों को काफी चिंतित कर दिया है। क्योंकि इस रोग के प्रभाव चलते सोयाबीन की फसल अब गुणवत्ता में भी काफी असर देखने को मिलेगा। जिससे उन्हें उत्पादन में काफी गिरावट होने की संभावना बढ़ रही है। इसके अलावा किसानों को गिरते हुए उत्पादन से उन्हें खर्च निकालना भी काफी मुश्किल होगा।

 

 

सोयाबीन की फसल (Soyabean Fasal) में सफेद मक्खी के प्रकोप के होने के कारण मोजेक वायरस जनित रोग होने की संभावना होती है। फसल में सफेद मक्खी का अटैक होगा तो वह पत्तों पर बैठेगी और इन पत्तों पर बैठने से ही यह संक्रमण काफी तेजी के साथ आगे की ओर बढ़ता है। जिससे पीला मोजेक रोग अपना प्रभाव दिखाता है।

 

 

इसके अलावा इस बारिश वाली मौसम में बार-बार बारिश होने से यह रोग और ज्यादा गति मिलती है। ऐसे में किसानों को सोयाबीन की फसल में लगने वाले पीला मोजेक रोग की रोकथाम के लिए क्या-क्या उपाय अपनाना चाहिए और इसकी क्या लक्षण है। यह पूरी जानकारी आप इस आर्टिकल के माध्यम से जान पाएंगे…

 

 

मोजैक वायरस से कितना उत्पादन में असर

 

सोयाबीन फसल के साथ-साथ अन्य दलहन फसलों में भी पीला मोजेक वायरस जनित रोग अपना प्रभाव दिखाता है। और यह वायरस होने के चलते फसल में करीब 50% से लेकर 90% तक का नुकसान हो सकता है। ऐसे में किसानों को अपनी फसल में इस रोग की रोकथाम करना सबसे महत्वपूर्ण हो जाता है। और इसकी रोग की पहचान करने के क्या लक्षण दिखाई देंगे वह आप नीचे देख सकते हैं।

 

 

 पीला मोजेक रोग को कैसे पहचाने 

 

किसानों को चाहे सोयाबीन की फसल हो या अन्य दलहनी फसल इस पीला मोजेक रोग का प्रकोप हो उससे पहले यह जानना आवश्यक है कि इसके क्या लक्षण हैं। ताकि इसका समय पर नियंत्रित किया जा सके।

 

 

कृषि डॉक्टर के अनुसार फसल में लगने वाले इस पीला मोजक रोग का प्रभाव होने पर फसल की पत्तियां पीले रंग की दिखाई देने लगती है और पत्तियां खुरदरी दिखाई देती है। यह रोग पौधों को अपने प्रकोप के चलते पौधे सिकुड़ने लगता है। और पत्तियां भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। फिर अचानक से सफेद मक्खी का अटैक होगा और फसल की गुणवत्ता गिरने लगेगी। अगर किसानों को यह सभी लक्षण दिखाई दें तो इस वाइरस को नियंत्रित करना चाहिए।

 

 

 

 

कैसे करें पीला मोजेक रोग से बचाव 

 

कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक किसानों को सोयाबीन की फसल में होने वाले पीला मोजेक रोग को नियंत्रित करने के लिए सबसे पहले जहां-जहां पर इस के लक्षण दिखाई दे आरंभिक दौर में तो पौधों को उखाड़ जमीन से बाहर निकाला जलाकर नष्ट कर दे।

 

इसके अलावा सोयाबीन के फसल में इस वायरस रोग की रोकथाम के लिए किसान अपने खेत के अलग-अलग जगह पर पीला चिपचिपा ट्रैप भी लगा सकते हैं।

 

 

फसल में यह रोग फैलाने का काम सफेद मक्खी करती है। जिसको नियंत्रित करने के लिए किसानों को पहले से ही मिश्रित कीटनाशक दवा बीटासायफ्लुथ्रिन + इमिडाक्लोप्रिड (Beta-cyfluthrin+Imidacloprid) प्रति हेक्टेयर 350 ml दवा पानी के साथ छिड़काव करें।

 

 

या फिर इसके अलावा थायोमिथोक्सम + लैम्ब्डा सायहेलोथ्रिन (Thiamethoxam 12.6% +Lambda Cyhalothrin) प्रति हेक्टेयर में 125 मिलीलीटर का छिड़काव कर सकते हैं।

 

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Conclusion:- किसानों को अपनी सोयाबीन फसल में पीला मोजेक रोग की रोकथाम करना जरूरी, इसके क्या क्या लक्षण दिखाई दे सकते हैं। इसके द्वारा फसल में फैलने के कारण और कितना नुकसान पहुंच सकता है। पीला मोजेक वायरस से फसल में किसी भी कीटनाशक दवा का छिड़काव से पहले अपने आसपास के कृषि विभाग से एक बार जानकारी जरूर प्राप्त करना चाहिए। 

 

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