किसानों के लिए केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान, करनाल के द्वारा तैयार की गई। Sarso Ki Nai 2 Variety सरसों की दो नई किस्म में क्या-क्या विशेषताएं हैं, इसका पकने का समय, उत्पादन कैसा रहेगा। जानते हैं पूरी जानकारी के साथ
Sarso Ki Nai 2 Variety
रबी का सीजन आरंभ होने को है और रबी के मौसम में देश के विभिन्न राज्यों में अलग-अलग हिस्सों में गेहूं और सरसों की बुवाई मुख्य रूप से मुख्य स्थान पर रहती है। जिसमें से सरसों की बुवाई बड़े क्षेत्र में बोई जाती है। देश के हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश राज्यों के अलावा भी कई राज्यों में सरसों की बुवाई किया जाता है।
सरसों की खेती के लिए उपयुक्त तापमान की बात करें तो 25 से 26 डिग्री सेल्सियस ही माना जाता है और किस सरसों की बुवाई अक्टूबर के पहले सप्ताह जो कि 25 अक्टूबर तक बुवाई कर सकते हैं। सरसों की अगेती फसल की बुवाई के लिए 25 सितंबर का समय सही रहता है।
बता दें कि केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक किसानों को सरसों का बीज अच्छे गुणवत्ता का लेना चाहिए। आइए जानें सरसों की 2 नई किस्म (Sarso Ki Nai 2 Variety) 1. सीएस 61 किस्म 2. सीएस 62 किस्म के बारे में जानकारी….
1. सरसों की नई किस्म सीएस 61 की मुख्य विशेषताएं
Mustard New Variety CS 61 Details: सरसों की सीएस 61 वैरायटी को केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान (CSSRI) करनाल के कृषि वैज्ञानिकों के द्वार तैयार किया गया सरसों का बीज है। इस किस्म में सरसों के पौधों की ऊंचाई 181 सेमी तक होता है। जो कि 125 दिन से 132 दिन के समय में पककर तैयार हो जाएगी।
उपज कितना मिलेगा: सरसों की सीएस 61 किस्म को अगर नमक वाली मिट्टी में बुवाई किया जायेगा तो इसका उत्पादन प्रति हेक्टेयर 21 क्विंटल से लेकर 23 क्विंटल तक हो सकता है। वहीं जो जमीन सामान्य या फिर सही पानी वाली हो तो ये सरसों की वैरायटी में उत्पादन बढ़कर 25 क्विंटल से लेकर 28 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होता है।
रोग प्रतिरोधक किस्म कितना: सरसों की यह वैरायटी में उत्पादन अधिक देने के साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता भी इस किस्म में अधिक माना गया है। ये वैरायटी सफेद रतुआ, स्टैग हेड, अल्टरनेरिया ब्लाइट, पाउडरी व डाउनी फफूंदी, स्क्लेरोटिनिया स्टेम रॉट रोग के प्रति प्रतिरोधी होने के आलावा इसमें एफिड रोग का प्रभाव भी कम होता है।
2. सरसों की नई किस्म सीएस 62 में क्या क्या खासियत
Mustard New Variety CS 62 Details: सरसों की सीएस 62 वैरायटी को भी केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान (CSSRI) करनाल के कृषि वैज्ञानिकों के द्वार विकसित किया गया सरसों का अगेती किस्म है। इस किस्म में सरसों के पौधों की ऊंचाई 168 सेंटीमीटर के करीब होता है। इस किस्म में तेल की मात्रा तकरीबन 39.5 प्रतिशत तक होता है।
उत्पादन कितना मिलेगा: सरसों की वैरायटी सीएस 62 की बुवाई 136 दिन के करीब तैयार हो जाता है। सरसों की आईएसएम की बुवाई अगर सोडियम वाली मिट्टी में किया जाए तो प्रति हेक्टेयर 20 क्विंटल से 22 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त होगा। वहीं इसके अलावा सामान्य मिट्टी और पानी सही से हो तो इसका उत्पादन बढ़कर प्रति हेक्टेयर 25 क्विंटल से 27 क्विंटल तक उत्पादन मिल सकता है।
रोग प्रतिरोधी कितना: सरसों की की 62 किम को किस लगते हैं तो इसमें सफेद रतुआ, स्क्लेरोटिनिया स्टेम रॉंट, अल्टरनेरिया ब्लाइट, पाउडरी व डाउनी फफूंदी, स्टैग हेड रोग के प्रति प्रतिरोधी वहीं एफिड का भी फसल प्रकोप भी कम होगा।
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सरसों बुवाई से पहले खेत को तैयार करना
किसानों को सरसों की बिजाई करने से पहले खेत की अच्छे से जुताई करने वाले हाल से करना चाहिए क्योंकि इसमें मिट्टी भुरभुरा होना चाहिए। जुताई करने पर मिट्टी में नमी पर्याप्त न हो तो पानी से सिंचाई करें।
जिन किसानों की भूमि में लवणग्रस्त है। तो उसकी जांच अवश्य करवा अगर जांच करवाने पर जमीन का क्षारीयता यानी पीएच मान 9 से लेकर 9.4 हो तो इस स्थिति में जिप्सम प्रति हेक्टेयर 4 टन डालकर जमीन में अच्छे से पानी देना चाहिए। अगर पानी की सुविधा नहीं है। तो किसानों को बारिश के मौसम में मौसम डालकर अच्छे से जुताई करें।
सरसों बीज का उपचार करना चाहिए
किसानों को बीच उत्तम क्वालिटी का होना चाहिए और फसल को कीटोस से सुरक्षित रखने के लिए इमिडाक्लोप्रिड 600 एफ. एस. या थियामेथोक्सम 35 एफएस. 8 मिली प्रति किलोग्राम बीज की मात्रा में मिलाकर बीज उपचार करना चाहिए।
सरसों फसल को बीज जनित रोग की रोकथाम के लिए प्रति किलो बीज को 2.5 ग्रामथाइरम/ बाविस्टीन से बीज को उपचारित करने पर बुवाई करें।
सरसों की फसल कब करें बुवाई
हमने आपके ऊपर भी बताया है कि सरसों की बुवाई सही समय पर करना चाहिए अगर बुवाई का कार्य समय पर नहीं होगा तो फसल में माहू कीट व अन्य कीट लगने का समस्या ज्यादा देखने को मिलतीहै। ऐसे में किसानों को सरसों का सही समय 25 अक्टूबर तक ही है।
सरसों बुवाई में खाद और उर्वरक डालना
किसानों को सरसों की बुवाई करने से पहले मिट्टी की एक बार जांच अवश्य करनी चाहिए ताकि उन्हें पोषक तत्वों का सही से जानकारी प्राप्त हो उसके आधार पर खेत में खाद और उर्वरक डाल सकते हैं। सरसों की फसल में किसानों को 50 किलोग्राम यूरिया और सिंगल सुपर फास्फेट प्रति हेक्टेयर 75 किलोग्राम का उपयोग करना चाहिए।
सरसों की फसल में सल्फर की पूर्ति के लिए सिंगल सुपर फास्फेट का उपयोग सबसे अच्छा रहेगा और उत्पादन भी अच्छा मिलेगा। पानी से सिंचाई वाली भूमि में किसानों को यूरिया की बुवाई के समय आधी मात्रा ही डालना चाहिए। वही बुवाई के समय से पहले सिंगल सुपर फास्फेट की मात्रा पूरा डालें जो यूरिया की आधी मात्रा बची हुई है उसका प्रयोग पहली सिंचाई 25 से 30 दिन के बाद करें।
सरसों की फसल में सिंचाई कितना करना चाहिए
किसानों को सरसों की फसल में सिंचाई समय पर करना बहुत जरूरी हो जाता है बता दें कि सरसों की फसल में फूल आने या दाना भराव के समय नमी होना भी बहुत जरूरी है। ऐसे में किसानों को सरसों की फसल में आवश्यकता अनुसार दो सिंचाई करना जरूरी हो जाता है।
सरसों की फसल में पहली सिंचाई बुवाई के 25 से 30 दिन बाद जब फूल आने की स्थिति हो उससे पहले ही कर देना चाहिए। वही सरसों की फसल में दूसरी सिंचाई अगर बारिश नहीं होती है तो फसल के 65 दिन से 70 दिन होने के बाद करना चाहिए।
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Conclusion:- आज आपने जाना सरसों की 2 नई किस्म (Sarso Ki Nai 2 Variety) सीएस 61 और सीएस 61 के बारे मे जानकारी। इन दोनों किस्म को पकने में समय, उपज और रोग प्रतिरोधक क्षमता कितना है। किसी तरह की अधिक जानकारी हेतु जैसे बीज उपचार में दवा के बारे मे या फिर किस्म की जानकारी कृषि विभाग द्वारा ले सकते हैं।