Nano DAP Experiment Update: नैनो डीएपी का ICAR के प्रयोग में हुआ सफल, फसल में उपयोग से आई पैदावार में 27% बढ़ोतरी

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नैनो डीएपी का आईसीएआर ने किया एक्सपेरिमेंट, जानें इस Nano DAP Experiment Update की पूरी जानकारी…

हमारे देश में आजादी के बाद सबसे बड़ी समस्या हुई तो वह थी पर्याप्त रूप में अनाज ना होना। जिसकी चलते देशवासियों को अनाज को लेकर काफी समस्याएं होती थी। इन समस्या से उभरने के लिए विदेश से गेहूं का आयात पर निर्भर रहना पड़ता था।

 

देश में अनाज की उपलब्धता सुनिश्चित हो इसके लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) संस्थान के कृषि वैज्ञानिकों कड़ी मेहनत के द्वारा रिसर्च करना शुरू किया और हरित क्रांति पर जोर दिया गया। जिसके चलते देश में आज गेहूं पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है लेकिन अब एक बार फिर से एक नई क्रांति की आवश्यकता है क्योंकि किसानों के द्वारा अपने खेतों में खाद और उर्वरक बोरियों का इस्तेमाल कर रहे हैं।

Nano DAP Experiment Update: इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर) के कृषि वैज्ञानिक की ओर से बोरी की जगह पर एक छोटी सी बोतल में खाद का आविष्कार किया है। जिसके चलते किसानों को खर्च कम होने के साथ-साथ फसलों को भी लाभ मिलेगा और सरकार को भी लाभ पहुंचेगा।

पैदावार में हुआ 27% का लाभ

देश में कृषि के क्षेत्र में नई-नई रिसर्च करने वाले भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research) यानी आईसीएआर में कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा खेती में बीज से लेकर अन्य सभी चीजों का रिसर्च किया जाता है और यह एक रिसर्च इंस्टीच्यूट है।

बता दें कि इस स्थान के द्वारा नए-नए एक्सपेरिमेंट किए जाते हैं। जिससे खेती में किसानों को लाभ पहुंचे। इसी में से एक है नैनो डीएपी (Nano DAP) व नैनो यूरिया (Nano Uriya) का इस्तेमाल किया गया। किसानों के द्वारा अपने खेतों में होने वाले पारंपरिक डीएपी बोरी के तुलना में नैनो डीएपी से पैदावार में बढ़ोतरी देखी गई है। Nano DAP Experiment Update जो की 2.4% से लेकर 27% तक अधिक देखने को मिला है। नैनो डीएपी का इस्तेमाल सही खुराक में देने पर ही यह बढ़ोतरी दर्ज किया गया है।

 

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नैनो डीएपी कहां कहां पर किया गया प्रयोग

Nano DAP Experiment Update: भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की ओर से देश भर के 3000 से अधिक स्थान पर इसका प्रयोग किया गया। जिसमें देश के पंजाब, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु विभिन्न इलाकों में इसमें कितना किसानों को भी शामिल किया गया। इन सभी इलाकों में होने वाली फसल जैसे गेहूं, कपास, मक्का, चावल, चना, मूंगफली, गोभी, लौकी, प्याज के साथी अन्य फसलों पर भी नैनो डीएपी का कैसा असर हुआ वह देखा गया।

 

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कौन कौन सी संस्थान में हुआ प्रयोग

नैनो डीएपी का देश के विभिन्न हिस्सों में प्रयोग करने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद यानी आईसीएआर के द्वारा कई प्रतिष्ठित स्थान को शामिल किया गया। जो की निम्नलिखित है

  • भारत कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) :- नई दिल्ली
  • भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान (IIRR) :- हैदराबाद
  • भारतीय बाजरा अनुसंधान संस्थान (IIMR) :- हैदराबाद
  • भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान (IIPR) :- कानपुर
  • केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान (CICR) :- नागपुर
  • भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान (IIHR) :- बेंगलुरु
  • भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान (IIVR) :- वाराणसी

नैनो डीएपी का परीक्षण देश के अलग-अलग राज्य कृषि विश्वविद्यालय में भी किया गया जैसे

  •  तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय :- कोयंबटूर
  •  प्रोफेसर जयशंकर तेलंगाना राज्य कृषि विश्वविद्यालय :- हैदराबाद
  • महात्मा फुले कृषि विद्यापीठ :- राहुरी
  • डॉ पंजाबराव देशमुख कृषि विद्यापीठ :- अकोला
  • पंजाब कृषि विश्वविद्यालय :- लुधियाना
  • इसके साथ ही किसानों के खेतों में भी नैनो डीएपी का प्रदर्शन देखा गया

किसानों के सामने कई तरह की दिक्कत

किसानों को अपने खेतों में खेती करने में कई तरह की दिक्कत भी आती है जैसे अपने जमीन की मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन कम होना, भूमि में फसलों को मिलने वाले पोषक तत्व कम होना, सही मात्रा में खाद और उर्वरक के साथ-साथ मौसम में होने वाले जलवायु परिवर्तन का भी प्रभाव खेतों में देखने को मिलता है।

जिसमें सबसे मुख्य कारण रासायनिक और कौन-कौन का सही से इस्तेमाल नहीं करना है। बताने की और काम पर सरकार की ओर से भारी सब्सिडी दिया जाता है। जिसके चलते किसान खाद सस्ता होने के चलते सही उपयोग की बजाए अधिक मात्रा में खाद खेतों में डालते हैं।

नैनो तकनीक का हुआ आविष्कार

हमारे देश में खेतों में हो रहे रासायनिक खाद के अधिक उपयोग के चलते ठीक तरह की किसानों को बाधा उत्पन्न होती है इसकी रोकथाम के लिए कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा नैनों तकनीक जो की अत्यधिक तकनीक की खोज को आरंभ किया।

जिसका मुख्य कारण मिट्टी में हो रहे नुकसान के साथ-साथ पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए इफको व कोरोमंडल इंटरनेशनल 2023 के द्वारा नैनो डीएपी का निर्माण कर रही है।

 

नैनो डीएपी के इस्तेमाल को बढ़ावा

बता दें कि देश की वित्त मंत्री के द्वारा जारी होने वाले अंतरिम बजट 2024/25 के दौरान सभी कृषि जलवायु क्षेत्रों में होने वाले विभिन्न फसलों पर खाद और उर्वरक के रूप में नैनो डीएपी (Nano DAP) यानी डाई-अमोनियम फॉस्फेट के उपयोग को बढ़ाने की घोषणा की गई है।

हमारे देश भारत में डीएपी यूरिया के बाद दूसरा सबसे अधिक उपयोग में किया जाने वाला खाद है। और डीएपी यूरिया के मुकाबले में अधिक लाभदायक माना जाता है क्योंकि इसमें नाइट्रोजन होने के साथ-साथ फास्फोरस भी मिलता है।

पौधों के लिए यह दोनों ही महत्वपूर्ण होते हैं। क्योंकि फसल के पौधों को 18 पोषक तत्वों में यह दो भी शामिल हैं। डीएपी का उपयोग से फसल को 46 %फॉस्फोरस और 18% तक नाइट्रोजन मिलता है।

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