अनुसंधान केंद्र ने तैयार किया नया चना की किस्म कम खर्च में बंपर पैदावार, जानें खासियत

Chana Ki Kheti: हमारे देश में राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश व अन्य राज्य में चना की खेती किया जाता है। आज के समय किसानों के लिए चना की खेती में लाभ पहुंचाने के लिए भारत के अलग-अलग हिस्सों में कृषि वैज्ञानिकों व संस्थाओं के द्वारा नई-नई समय तैयार किया गया है जो कि प्रतिकूल मौसम के साथ-साथ भूमि व पानी की सुविधा के अनुसार विकसित की गई है। इसी अनुसार Chana Variety Developed 2025 चना की कई किस्मों को भारतीय दलहन अनुसंधान केंद्र, कानपुर की ओर से विकसित किया गया है।

Chana Variety Developed 2025

विकसित की गई की कई तरह की चना की किस्म में किसानों के द्वारा सबसे अधिक कुबेर व कुंदन को पसंद किया जा रहा है। जो कि किसानों के लिए अच्छी किस्म रही हैं। संस्थान के द्वारा चना की इन्हीं किस्म को रहने वाले मौसम व पर्यावरण के अनुकूल तैयार किया गया। वहीं ये किस्मों को किसान के पास पहुंचना आरंभ हो गया है।

 

चना उकठा रोग प्रतिरोधक क्षमता वाला बीज विकसित किया

Chana Variety Developed 2025: बता दें कि भारतीय दलहन अनुसंधान केंद्र की ओर से कृषि वैज्ञानिक पीके कटियार के द्वारा कहा गया है कि चन की किस्म IPC 2010-142 जिसको कुबेर भी कहा जाता है। चना की इस किस्म को संस्थान की ओर से विकसित वर्ष 2023 में किया गया था। जो कि कम खर्च में अधिक पैदावार देने वाली किस्म है।

चना के इस किस्म को लगाने का सबसे अधिक लाभ यह है कि इसके समय कोई भी तरह का रोग नहीं आता। यह चना की फसल में आने वाले उकठा रोग प्रतिरोधक किस्म है।

 

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पकने का समय व पैदावार

चना का यह कुबेर किस्म की बुवाई करने के पश्चात ये 130 से लेकर 135 दिन के समय में पककर तैयार हो जाता है। इसके उत्पादन की बात करें तो यह तकरीबन 20 से लेकर 22 का क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होता है। चना की इस किस्म को पकाने में केवल दो पानी देने की आवश्यकता रहता है और इस किस्म को पूरे उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए लाभदायक होगा।

 

चना का किस्म कुंदन पूर्वी उत्तर प्रदेश के लिए विकसित

उनके मुताबिक चना की किस्म IPC B 2015-132 जिसको कुंदन कहां जाता है यह वैरायटी भी किसान के लिए काफी लाभदायक होगा। चना का किस्म कुंदन पूर्वी उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए तैयार किया गया। वहीं इसके अलावा उड़ीसा, असम, बिहार, पश्चिम बंगाल, ईस्टर्न यूपी और झारखंड राज्य के किसानों के लिए अधिक लाभदायक होगा। चना की इस वैरायटी को वर्ष 2024 में ही विकसित किया गया।

पैदावार कितना मिलेगा

चना की किस्म कुंदन में पौधे बिल्कुल सीधा रहता है। और यह उकठा रोग विरोधी वैरायटी जो कि 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर का उत्पादन देती है। वहीं ये एक मशीन हार्वेस्टर भी है।

चना की अन्य वैरायटी की खासियत

चना का अटल किस्म: बता दें कि वैज्ञानिक डॉ पीके कटियार मैं जानकारी देते हुए बताया कि किसानों के द्वारा कई बार देखा गया है की बुवाई करने का समय लेते हो जाता है। ऐसे में किसानों को अपने पशुओं के लिए चारा नहीं बच पाता। इस स्थिति में चना की किस्म IPC 2060-28 जिसको अटल किस्म कहा जाता है। इस किस्म को किस दिसंबर महीने के दूसरे सप्ताह के दौरान बुवाई किया जा सकता है।

चना की इस वैरायटी में अन्य वैरायटी के मुकाबले 26.50% प्रोटीन रहता है। वही यह अन्य किस्म के मुकाबले में थोड़ा कम पैदावार रहती है। ये किस्म 18 से लेकर 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन देती है।

 

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मध्य उत्तर प्रदेश के लिए चना किस्म शिवा

उनके मुताबिक मध्य यूपी किसानों के लिए चना का किस्म IPC 2010-134 जिसको शिवा भी कहा जाता है। चना की इस किस्म की विशेषता यह है कि यह मध्य यूपी मौसम में बढ़िया उत्पादन प्राप्त करने वाली है। और यह मध्य यूपी यानी बरेली, हरदोई, इटावा, शाहजहांपुर के लिए बेस्ट रहेगा।

पकने का अवधि व पैदावार

चना का किस्म शिवा को बुवाई के बाद से 130 से लेकर 135 दिन का समय रहता है। इसके अलावा उत्पादन के बारे मे बात करें तो यह तकरीबन 20 से लेकर 24 क्विंटल तक प्रति हेक्टेयर में होता है। चना की ये किस्म भी उकठा रोग विरोधी में से एक है।

आखिर क्या होता है उकठा रोग

किसानों की जानकारी के लिए बता दें कि फसल में लगने वाला उकठा रोग 1 फंगल रोग जिससे फसल के पौधों की संवहनी प्रणाली को प्रभावित होती। उकठा रोग कई तरह की फसल जैसे चना, अरहर , गन्ना आदि अन्य फसलों में इसका असर देखने को मिल सकता है।

उकठा रोग के क्या क्या लक्षण दिखाई देते हैं

1). फसल में इस रोग से ग्रसित पौधे अन्य पौधों के मुकाबले में छोटे होने व कम मजबूत वाले होते हैं।

2). इस रोग से पौधों की पत्तियों में पीलापन आने लगता है जो कि नीचे की तरफ बढ़ कर सुखने लगता है।

3). इस रोग के कारण पौधे के तना का काटने पर इसके अंदर मज्जा लाल-भूरे का रंग मलिनकिरण जैसा देखा जा सकता है।

4). रोग के अधिक बढ़ने पर पौधों के तना का मध्य भाग पूरा खोखला भी हो सकता है।

 

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