सरसों की नई उन्नत किस्म से कितना उत्पादन, बुवाई से जुड़ी पूरी जानकारी, जानें Pusa Double Zero Mustard 35 Variety
Pusa Double Zero Mustard 35 Variety: किसान आने वाले रबी सीजन में बोई जाने वाली फसलों के तैयारी कर रहे हैं। इसी बीच भारतीय कृषि विज्ञान परिषद के द्वारा सरसों की नई किस्म को लांच किया गया है। सरसों की इस नई किस्म Pusa Double Zero Mustard 35 Variety को PDZ 14 के नाम से भी जाना जाता है।
लॉन्च की गई नई सरसों की किस्म पूसा डबल जीरो मस्टर्ड 35 में चार तरह की रोग से मुकाबला करने में सक्षम है। या फिर यूं कहीं की यह चार रोग इसमें नहीं लगता। सरसों की नई इस वैरायटी को आईसीएआर की ओर से देश की चार राज्यों के किसानों को बुवाई करने का कहा गया है।
आईसीएआर – आईएआरआई सरसों का बेहतर किस्म तैयार
सरसों की नई वैरायटी पूसा डबल जीरो मस्टर्ड 35 को
भारतीय कृषि विज्ञान परिषद (ICAR) के IARI ने विकसित किया गया है। यह सरसों की किस्म किसान सिंचाई वाले क्षेत्रों में सही समय पर बुवाई करने पर अच्छा उत्पादन मिलेगा। सरसों की इस किस्म को मार्च महीने में बुवाई के लिए मंजूर दिया गया।
पूसा डबल जीरो मस्टर्ड 35 में पकने का समय
Pusa Double Zero Mustard 35 Variety Production: यह सरसों वैरायटी को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली के कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक बिजाई करने के बाद से 132 दिन में पककर तैयार होगा। और इस किस्म में कई तरह के रोग भी नहीं लगेंगे। जिसके चलते किसानों को इसकी बुवाई करने पर प्रति हेक्टेयर 22 का क्विंटल के करीब उत्पादन प्राप्त हो सकता है।
बुवाई कहां पर करें: सरसों की यह नई पूसा डबल जीरो मस्टर्ड 35 (पीडीजेड 14) किस्म की बुवाई को लेकर भारतीय कृषि विज्ञान परिषद आईसीएआर के माने तो यह देश के राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश के किसान बुवाई कर सकते हैं।
कौन-कौन से नहीं लगेंगे रोग
सरसों की पूसा डबल जीरो मस्टर्ड 35 नई किस्म में IARI के कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक सरसों फसल में होने वाले चार रोगों से बचाव होगा। जिसके चलते किसानों को आर्थिक मदद मिलेगी। क्योंकि इन रोगों पर उन्हें कीटनाशक दवा का छिड़काव नहीं करना पड़ेगा।
पूसा डबल जीरो मस्टर्ड 35 की वैरायटी में सरसों की फसल में होने वाले रोग जैसे सफेद रतुआ रोग (व्हाइट रस्ट) फफूंदी रोग (अल्टरनेरिया ब्लाइट) फफूंदी रोग ( स्केलेरोटिनिया स्टेम रॉट) डाउनी फफूंद व पाउडरी फफूंद रोग से बचाव होगा। यानी इस किस्म में यह रोग नहीं होगा तो किसानों को इसको रोकने में होने वाले कीटनाशक दावों के खर्चे बचाव होगा जिसे उन्हें अधिक लाभ प्राप्त होगा और उत्पादन भी अधिक प्राप्त होगा।
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